अमृत काल के पंचप्रण
1- विकसित भारत का लक्ष्य
2- गुलामी के हर अंश से मुक्ति
3- अपनी विरासत पर गर्व
4- एकता और एकजुटता
5- नागरिकों में कर्तव्य की भावना
"मैं शपथ लेता हूँ कि विकसित भारत के निर्माण में अपनी
भागीदारी निभाऊंगा। मैं शपथ लेता हूँ कि गुलामी की
मानसिकता से मुक्ति के लिये हर संभव प्रयास करूंगा।
मैं शपथ लेता हूँ कि देश की समृद्ध विरासत पर गर्व करूंगा
और इसके उत्थान के लिए हमेशा कार्य करता रहूँगा। मैं शपथ
लेता हूँ क देश की एकता और एकजुटता के लिए सदैव प्रयासरत
रहूँगा । मैं शपथ लेता हूँ कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्वों
का पालन करूंगा। मैं शपथ लेता हूँ कि देश के गौरव के लिए प्राण
देने वाले वीरों से प्रेरित होकर राष्ट्र की रक्षा, सम्मान और
प्रगति के लिए समर्पित रहूँगा।"